ईरान-इज़राइल संघर्षविराम: 58 साल में ईरान के परमाणु कार्यक्रम ने कैसे बदला रुख? अमेरिका-पाकिस्तान का क्या रहा रोल?

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ईरान-इज़राइल संघर्षविराम

इजरायल-ईरान सीजफायर: अब ईरान के परमाणु कार्यक्रम का क्या होगा?

ईरान-इज़राइल संघर्षविराम: 13 दिन तक चले इज़राइल और ईरान के बीच मिसाइल और ड्रोन हमलों के बाद आखिरकार संघर्ष विराम हो गया है। लेकिन अब बड़ा सवाल ये है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम का क्या होगा? अमेरिका ने साल 1953 में ‘Atoms for Peace‘ पहल के तहत ईरान को परमाणु तकनीक दी थी, जिसे शहंशाह रज़ा पहलवी ने आगे बढ़ाया। लेकिन 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद यह कार्यक्रम रुक गया और फिर पाकिस्तान की मदद से दोबारा शुरू हुआ। हालिया हमलों के बाद अब फिर यह मुद्दा गरमाया हुआ है।

ईरान और इज़राइल के बीच 13 दिन बाद संघर्षविराम

ईरान और इज़राइल के बीच मिसाइल, ड्रोन और बम हमलों के 13 दिन बाद दोनों देश 24 जून को संघर्षविराम पर सहमत हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सुबह संघर्षविराम की घोषणा की, हालांकि उसके बाद भी इज़राइल ने आरोप लगाया कि ईरान की ओर से हमले जारी हैं, जिन्हें ईरान ने खारिज कर दिया। लेकिन दोपहर तक दोनों देशों में युद्धविराम हो गया।

अब सवाल उठता है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम का आगे क्या होगा, जिसे अमेरिका लंबे समय से रोकने की कोशिश कर रहा है?

58 सालों की परमाणु यात्रा: ईरान की कहानी

अमेरिका ने साझा की परमाणु तकनीक

1953 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर ने संयुक्त राष्ट्र में ‘Atoms for Peace’ विषय पर एक ऐतिहासिक भाषण दिया। इसका उद्देश्य परमाणु तकनीक को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए साझा करना था, खासकर शीत युद्ध के दौर में सहयोगी देशों को अपने पाले में करने के लिए।

CIA ने ईरान में करवाया तख्तापलट

इसी साल, CIA ने ईरान में तख्तापलट कर मोहम्‍मद मोसद्देक को हटाकर शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी को सत्ता में लाया। इसके बाद अमेरिका, ब्रिटेन और इज़राइल से ईरान के संबंध मजबूत हुए। शाह ने अरबों डॉलर खर्च कर ईरान को परमाणु ऊर्जा संपन्न बनाने का अभियान शुरू किया।

अमेरिका ने गिफ्ट किया परमाणु रिएक्टर

1960 के दशक में अमेरिका ने दोस्ती की निशानी के रूप में ईरान को एक छोटा परमाणु रिएक्टर गिफ्ट किया – जिसका नाम था तेहरान रिसर्च रिएक्टर। यह रिएक्टर आज भी ईरान की राजधानी में मौजूद है, जो इस बात की याद दिलाता है कि ईरान की परमाणु यात्रा की शुरुआत अमेरिका से हुई थी।

ईरान के किन देशों से हुए परमाणु समझौते?

1974 में शाह पहलवी पेरिस गए और वहां पांच 1000 मेगावाट के रिएक्टर का सौदा किया। इसके अलावा जर्मनी और साउथ अफ्रीका से यूरेनियम की आपूर्ति और रिएक्टर निर्माण को लेकर समझौते किए।

अमेरिका को कब हुआ शक?

1970 के दशक के अंत में अमेरिका को शक हुआ कि शाह परमाणु हथियार बनाने की दिशा में भी काम कर सकते हैं। 1978 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने आठ रिएक्टरों की डील में फ्यूल प्रोसेसिंग पर रोक लगा दी।

1979 की इस्लामी क्रांति के बाद क्या हुआ?

1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई और एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। शाह का शासन समाप्त हुआ और ईरान का नेतृत्व आयातुल्ला खुमैनी के हाथों में आ गया। शुरुआत में नए धार्मिक शासकों ने परमाणु कार्यक्रम को ‘पश्चिमी दखल’ मानकर रोक दिया।

ईरान का नजरिया कैसे और कब बदला?

ईरान और इराक के बीच आठ साल तक चले खूनी युद्ध के बाद खुमैनी को परमाणु तकनीक की सैन्य अहमियत का एहसास हुआ। इसके बाद ईरान ने पाकिस्तान की ओर रुख किया।

किसने दी ईरान को परमाणु तकनीक?

ईरान ने पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक ए. क्यू. खान से मुलाकात की और सेंट्रीफ्यूज तकनीक खरीदी, जिससे यूरेनियम को हथियार स्तर तक समृद्ध किया जा सकता था।

कब सामने आईं ईरान की सीक्रेट साइट्स?

2002 में ईरान के विरोधी समूह से मिली जानकारी और सेटेलाइट इमेजेस से अमेरिका और यूरोप को ईरान की सीक्रेट न्यूक्लियर साइट्स का पता चला। इसके बाद दबाव और प्रतिबंध का सिलसिला शुरू हुआ।

अमेरिका ने कब किया हमला?

करीब दो दशक तक बातचीत और प्रतिबंध जारी रहे, लेकिन ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम से पीछे नहीं हटा। 24 जून 2025 को इज़राइल-ईरान युद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान की परमाणु साइट्स पर सैन्य हमला करने का आदेश दिया। अमेरिकी सेना ने नतांज, अराक और फोर्डो साइट्स को निशाना बनाया।

संघर्षविराम के बाद क्या होगा ईरान के परमाणु कार्यक्रम का?

ईरान की एटॉमिक एनर्जी ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी का कहना है कि अमेरिकी और इज़राइली हमलों से जो नुकसान हुआ है, उसकी मरम्मत की जा रही है।

वहीं, अमेरिकी थिंक टैंक Defense Priority की मिडिल ईस्ट डायरेक्टर रोज़मेरी कालानिक का कहना है कि अगर अमेरिका ने ईरान की परमाणु सुविधाएं नष्ट कर दी हैं, तो ईरान अब इसे और तेज़ी और ताकत से आगे बढ़ाने की कोशिश करेगा।

यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स के अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर एंथनी बर्क के अनुसार, ईरान के पास दो रास्ते हैं – या तो वह यूरेनियम संवर्धन (uranium enrichment) जारी रखे, या फिर रूस या नॉर्थ कोरिया के साथ मिलकर काम करे।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न समाचार स्रोतों और ऐतिहासिक दस्तावेजों पर आधारित है। यह केवल सूचनात्मक उद्देश्य के लिए प्रस्तुत की गई है। hcnewss दी गई जानकारी की सटीकता या पूर्णता की गारंटी नहीं देता। किसी भी राजनीतिक या अंतरराष्ट्रीय विषय पर निष्कर्ष निकालने से पहले संबंधित आधिकारिक स्रोतों की पुष्टि ज़रूरी है। लेख में व्यक्त विचार लेखक या स्रोतों के हैं, वेबसाइट की आधिकारिक राय नहीं माने जाएं।)

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